सुनो साथजी सिरदारो, ए कीजो वचन विचार।
देखो बाहेर माहें अंतर, लीजो सार को सार जो सार ।।१
हे शिरोमणि सुन्दरसाथजी ! सुनो तथा इन वचनों पर विचार करो. इन वचनोंको बाहरसे श्रवण कर अन्दरसे मनन भी करो एवं इनके सारके भी सारतत्त्वको अन्तर आत्मामें धारण करो.
सुंदरबाई कहे धाम से, मैं साथ बुलावन आई।
धाम से ल्याई तारतम, करी ब्रह्मांड में रोसनाई।।२
सद्गुरु श्री देवचन्द्रजी महाराज (सुन्दरबाई) ने कहा था कि मैं परमधामसे सुन्दरसाथको बुलानेके लिए आया हूँ. उन्हीं सद्गुरुने परमधामसे तारतम ज्ञाान लाकर पूरे विश्वको प्रकाशित कर दिया है.
कहे सुन्दरबाई अक्षरातीत से, आया खेल में साथ।
दोए सुपन ए तीसरा, देखाया प्राननाथ।।९
सद्गुरुने यह भी कहा कि अक्षरातीत धामसे ब्रह्मात्माएँ इस नश्वर खेलमें सुरता रूपसे आई हैं. धामधनीने इस स्वप्न जगतमें व्रज और रास तथा यह तीसरी जागनी लीला दिखाई है.
धनी फुरमान साख लेय के, देखाय दई असल।
सो फुरमाया छोड के, करें चाह्या अपने दिल।।१२
सद्गुरुने कतेब ग्रन्थोंकी साक्षी देकर पूर्णब्रह्म परमात्मा एवं ब्रह्मात्माओंके वास्तविक स्वरूपका दर्शन करवा दिया. कतेब ग्रन्थोंको माननेवाले लोग उनके ऐसे वचनोंको छोड.कर अपने मनोनुकूल अर्थघटन करते हैं.
तोडत सरूप सिंघासन, अपनी दौडाए अकल।
इन बातों मारे जात हैं, देखो उनकी असल।।१३
ऐसे लोग परमात्माके स्वरूप तथा उनके स्थान (सिंहासन-परमधाम) की अवगणना करते हैं और अपनी बुद्धिको परमात्माके प्रति दौड.ाते हैं. वे इन्हीं रहस्यों पर धोखा खा जाते हैं. यही उनकी वास्तविकता है.
दरदी जाने दिलकी, जाहेरी जाने भेख।
अन्तर मुस्किल पोहोंचना, रंग लाग्या उपला देख।।१५
धामधनीके विरहका अनुभव करनेवाली विरही आत्मा ही सद्गुरुके दिलकी बात समझ सकती है, बाह्य दृष्टिवाले लोग मात्र उनकी वेश-भूषाको ही महत्त्व देते हैं. जिन्होंने मात्र बाह्य रूप पर ही विश्वास किया है, उनको अन्तर्हृदय तक पहुँचना कठिन होता है.
इन विध सेवें स्याम को, कहे जो मुनाफक।
कहावें बराबर बुजरक, पर गई न आखर लों सक।।१६
इस प्रकार बाह्यदृष्टिसे परमात्माकी उपासना करनेवाले लोग मिथ्याचारी कहलाते हैं. स्वयंको तो वे ज्ञाानी कहलवाते हैं, किन्तु अन्त तक उनके हृदयसे दुविधा नहीं मिटती.
पेहेले तौले बुध जागृत, पीछे तौले धनी आवेस।
और तौले इसक तारतम, तब पलटे उपलो भेस।।३
वे सर्वप्रथम जागृत बुद्धिका और धनीके आवेशका मूल्याङ्कन करेंगी. पश्चात् प्रेम और तारतमका भी मूल्याङ्कन करेंगी. तब उनकी बाह्य (लौकिक) मान्यताएँ बदल जाएगी.
जो सैयां हम धाम की, सो जानें सब को तौल।
स्याम स्यामाजी साथ को, सब सैयोंपे मोल।।६
परमधामकी हम ब्रह्मात्माएँ ही सबका मूल्याङ्कन कर सकतीं हैं. श्याम-श्यामाजी एवं ब्रह्मसृष्टिका मूल्याङ्कन (महत्त्व) भी हम ब्रह्मात्माओंको ही ज्ञाात है.
जो कोई उलटी करे, साथी साहेब की तरफ।
तो क्यों कहिए तिन को, सिरदार जो असरफ।।१४
जो व्यक्ति धामधनीकी ओर उन्मुख आत्माओंको उनसे विमुख करनेका प्रयत्न करता है, तो ऐसे व्यक्तिको प्रतिष्ठित अथवा अग्रणी कैसे माना जाए?
भी लिख्या कुरान में गिरो की, सोहोबत करसी जोए ।
निज बुध जागृत लेय के, साहेब पेहेचाने सोए।।१८
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कुरानमें और भी लिखा है कि जो ऐसी आत्माओंका सङ्ग करेंगे, वे भी उनसे जागृत बुद्धि प्राप्त कर अपने धनीको पहचानेंगे.
ले साख धनी फुरमान की, महामत कहें पुकार।
समझ सको सो समझियो, या यार या सिरदार ।।२३
धामधनी सद्गुरु तथा धर्मग्रन्थोंकी साक्षीके आधारपर महामति पुकार कर कह रहे हैं. ब्रह्मआत्माएँ अथवा शिरोमणि सखियाँ इस रहस्यको जितना समझ सकें, उतना समझ लें.