Submitted by ranjanaoli on Wed, 2011-11-23 16:34
श्री जी साहेब जी मेहरबान
गिरो बचाई साहेब ने, तले कोहतूर हूद तोफान ।
बेर दूजी किस्ती पर, चढाए उबारी सुभान।।१२
प्रकरण १ छोटा क़यामतनामा
इसी व्रज मण्डलमें इन्द्रकोपके समय श्रीकृष्णजीने ब्रह्मात्माओंको गोवर्धन पर्वतके नीचे सुरक्षित रखा था. इस प्रसङ्गको कुरानमें हूद तूफान कहा गया है. उस समय हूद पैगम्बरने अपने समुदायके लोगोंको कोहतूर पर्वतके नीचे सुरक्षित रखा था. दूसरी बार नूह तूफानके समय भी उन्होंने ही योगमायाकी नावमें चढ़ा कर उन्हें पार किया था.
छिपके साहेब कीजे याद, खासलखास नजीकी स्वाद ।
बडी द्वा माहें छिपके ल्याए, सब गिरोहसों करे छिपाए ।।१
प्रकरण १५ बड़ा क़यामतनामा
परमात्माकी उपासना गुप्त रूपसे करनी चाहिए. श्रेष्ठ आत्माएँ इस प्रकारकी उपासनासे उनकी निकटताका आनन्द प्राप्त करतीं हैं. सद्गुरु श्रीदेवचन्द्रजीने परब्रह्म परमात्मासे जो प्रार्थना की थी उसे उन्होंने ब्रह्मात्माओंके समुदायसे भी गुप्त रखा था.
One must pray to Lord secretly. The supreme souls pray in this manner and tastes the union with the Lord. The Master when prayed to Lord, he would even keep it secret from the other celestial souls.
बंदगी रूहानी और छिपी, जो कही साहेदी हजूर।
ए दोऊ बंदगी मारफत की, बीच तजल्ला नूर।।४२ श्री मारफत सागर
आत्मभावसे तथा गुप्तभावसे की जानेवाली उपासना परब्रह्म परमात्माके सान्निध्यकी कही जाती है. ये दोनों प्रकारकी उपासना आत्म-अनुभव अथवा परमधामकी पूर्ण पहचानकी है.
The souls that are from Paramdham they do not display their devotion and do it secretly and find themselves closer to the Lord.
Submitted by ranjanaoli on Thu, 2011-11-17 18:31
वरनन करते जिनको, धनी केहेते सोई धाम।
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सेवा सुरत संभारियो, करना एही काम।।३
सद्गुरु धनी श्री देवचन्द्रजी महाराज जिस मूलघरका वर्णन करते थे, वही अपना परमधाम है. इसलिए तुम धनीजीकी सेवा करते हुए अपनी सुरताको परमधामकी ओर केन्द्रित करो, क्योंकि हमें यही कार्य करना है.
स्याम स्यामाजी सुन्दर, देखो करके उलास।
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मनके मनोरथ पूरने, तुम रंग भर कीजो विलास।।५
अपने हृदयमें प्रेम और उल्लास भरकर अपने प्राणाधार श्याम-श्यामाजीके सुन्दर स्वरूपके दर्शन करो और अपने मनोरथोंको पूर्ण करनेके लिए उनके साथ आनन्द-विलास करो.
मंगल गाइए दुलहे के, आयो समे स्यामा वर स्याम।
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नैनों भर भर निरखिए, विलसिए रंग रस काम।।१०
इसलिए अब प्रियतम परमात्माके शुभगुणोंका गायन करो, क्योंकि सुन्दरवर श्याम-श्यामाको मिलनेका समय आ गया है. अब नयन भरकर युगल स्वरूपके दर्शन करो और प्रेमानन्द लेते हुए उनके साथ विलास करो.
धामके मोहोलों सामग्री, माहें सुखकारी कै विध।
अंदर आंखें खोलिए, आई है निज निध।।११
परमधामके महल और मन्दिर विभिन्न प्रकारकी आनन्ददायी सामग्रियोंसे परिपूर्ण हैं. इसलिए अन्तःदृष्टिको खोलकर देखो, वह अखण्ड निधि स्वरूप तारतम ज्ञाान यहाँ आ पहुँचा है.
Submitted by ranjanaoli on Thu, 2011-11-17 18:29
रोसनी पार के पार की, दई साहेब नाम धराए।
साहेब तेरी साहेबी भारी।
कौन उठावे तुझ बिन तेरी, सो दै मेरे सिर सारी।।१
हे (सद्गुरु) धनी ! आपकी महिमा अपरम्पार है. आपके बिना यह महान दायित्व कौन संभाल सकता है ? आपने तो यह महान् दायित्व मेरे सिर पर डाल दिया.
O Master, your commands are very difficult. Who can accomplish these herculean task without you and you have thrust it upon my shoulders(head)!
त्रिगुन तिथंकर अवतार, कै फिरस्ते पैगंमर।
तिन सबकी सोभा ले स्याम, आया महंमद पर।।२
Submitted by ranjanaoli on Thu, 2011-11-17 18:27
कृपानिध सुंदरवर स्याम, भले भले सुंदरवर स्याम।
उपज्यो सुख संसार में, आए धनी श्री धाम।।१
श्री श्यामाजीके वर श्याम-श्रीराजजी कृपाके सागर तथा अत्यन्त सुन्दर हैं. ऐसे धामके धनीके प्रकट होने पर संसारमें अखण्ड सुखका उदय हुआ.
प्रगटे पूरन ब्रह्म सकल में, ब्रह्म सृष्टि सिरदार।
ईस्वरी सृष्टि और जीव की, सब आए करो दीदार।।२
ब्रह्मसृष्टियोंकी शिरोमणि श्यामाजी पूर्णब्रह्मका आवेश लेकर इस संसारमें सद्गुरुके रूपमें पधारी हैं. ईश्वरीसृष्टि एवं जीवसृष्टि सभी आकर उनके दर्शन करें.
नित नए उछव आनंद में, होत किरंतन सार।
वैस्नव जो कोई षट दरसनी, आए इष्ट आचार।।३
Submitted by ranjanaoli on Thu, 2011-11-17 18:11
राग मारु
साथ जी सोभा देखिए, करें कुरबानी आतम।
वार डारों नख सिख लों, ऊपर धाम धनी खसम।।१
लिख्या है फुरमान में, करसी कुरबानी मोमिन।
अग्यारे सै साल का, सो आए पोहोंच्या दिन।।२
देख्या मैं विचार के, हम सिर किया फरज।
बडी बुजरकी मोमिनांे, देखें कौन क्यों देत करज।।३
करी कुरबानी तिन कारने, परख्या सबकी होए।
करे कुरबानी जुदे जुदे, सांच झूठ ए दोए।।४
कस न पाइए कसोटी बिना, रंग देखावे कसोटी।
कची पकी सब पाइए, मत छोटी या मोटी।।५
कसोटी कस देखावहीं, कसनी के बखत।
अबहीं प्रगट होएसी, जुदे झूठ से निकस के सत।।६
Submitted by ranjanaoli on Thu, 2011-11-17 17:58
धंन धंन सखी मेरे सोई रे दिन, जिन दिन पियाजीसों हुओ रे मिलन ।
धंन धंन सखी मेरे हुई पेहेचान, धंन धंन पीउ पर मैं भई कुरबान ।।१
हे ब्रह्मात्माओ ! जिस दिन सद्गुरु धनीके साथ मेरा मिलाप हुआ, वह दिन धन्य है. वह दिन भी धन्य है जिस दिन मैंने अपने धनीको पहचाना तथा उनपर स्वयंको सर्मिपत कर दिया.
O Souls, the day I united with my beloved is extremely blessed. The moment that I identified my beloved Lord is also very blessed and I am so grateful that I totally surrender myself to beloved Lord.
Submitted by ranjanaoli on Mon, 2011-10-17 13:48
मुखकमल मुकट छबि, मंगलाचरन
याद करो हक मोमिनों, खेल में अपना खसम।
हके कौल किया उतरते, अलस्तो बेरबकुंम।।१
तब रूहों बले कह्या, बीच हक खिलवत।
मजकूर किया हकें तुमसों, वह जिन भूलो न्यामत।।२
हुकमें ए कुंजी ल्याया इलम, हुकमें ले आया फुरमान।
दई बडाई रूहों हुकमें, हुकमें दई भिस्त जहान।।३
हुकमें हादी आइया, और हुकमें आए मोमन।
और फुरमान भेज्या इनपें, हकें कुंजी भेजी बैठ वतन।।४
और भी हुकमें ए किया, लिया रूह अल्ला का भेस।
पेहेचान दई सब अरसों की, माहें बैठे दे आवेस।।५
इलम दिया सब अरसों का, कहूं जरा न रही सक।
Submitted by ranjanaoli on Mon, 2011-10-17 13:33
प्रेम को अंग बरनन
प्रेम देखाऊं तुमको साथजी, जित अपना मूल वतन।
प्रेम धनी को अंग है, कहंू पाइए ना या बिन।।१
प्रेम नाम दुनियां मिने, ब्रह्म सृष्ट ल्याइंर् इत।
ए प्रेम इनों जाहेर किया, ना तो प्रेम दुनी में कित।।२
ए दुनियां पूजे त्रिगुन को, करके परमेस्वर।
सास्त्र अरथ ऐसा लेत हैं, कहे कोई नहीं इन ऊपर।। ३
सुक व्यास कहें भागवत में, प्रेम ना त्रिगुन पास।
प्रेम वसत ब्रह्म सृष्टि में, जो खेले सरूप व्रज रास।।४
तो नवधा से न्यारा कह्या, चौदे भवन में नाहिं।
सो प्रेम कहां से पाइए, जो रेहेत गोपिका माहिं।।५
Submitted by ranjanaoli on Sun, 2011-10-16 19:08
चलो चलो रे साथजी, आपन जैए धाम।
मूल वतन धनिएं बताया, जित ब्रह्म सृष्टि स्यामाजी स्याम ।।१
हे सुन्दरसाथजी ! चलो, हम सब साथ मिलकर परमधाम जाएँ. परमधामकी बात सद्गुरुने हमें बताई है, जहाँ ब्रह्मसृष्टि और श्यामाजी सहित श्री श्याम (अक्षरातीत श्रीकृष्णजी) विराजमान हैं.
Please read the books in the attachment and live more abudant and happy life.
Submitted by ranjanaoli on Wed, 2011-09-28 16:31
सनंध इमामके स्वाल जवाब की
सुनियो बानी मोमिनों, हुती जो अगम अकथ।
सो वीतक कहूं तुमको, उड जासी गफलत ।।१
All your confusion will be over
हे ब्रह्मात्माओ ! अपने प्रियतम धनीके उन दिव्य वचनोंको सुनो जो आज तक अगम और अकथ कहलाते थे. मैं वह वृत्तान्त कह रहा हूँ जिससे अज्ञाानकी झूठी नींद उड. जाएगी.
हुकम हुआ इमाम का, उदया मूल अंकूर।
कलस होत सबन का, नूर पर नूर सिर नूर।।२
Submitted by ranjanaoli on Tue, 2011-09-27 19:31
मद चढयो महामत भई, देखो ए मस्ताई।
धाम स्याम स्यामाजी साथ, नख सिख रहे भराई।।११
मेरी मस्तीको तो देखो, यह प्रेममद चढ.ने पर मैं महामति कहलाया. अब परमधाम, श्याम-श्यामाजी एवं सुन्दरसाथका स्वरूप मेरे रोम-रोममें अङ्कित हो गया है.
Submitted by ranjanaoli on Fri, 2011-09-23 19:20
सदा लीला जो व्रज की, मैं कही जो याकी विध।
अब कहूं वृन्दावन की, ए तो अति बडी है निध।।६४
व्रज मण्डलमें शाश्वतरूपसे चलनेवाली अखण्ड लीलाका विवरण मैंने इस प्रकार दिया है. अब मैं वृन्दावनकी रासलीलाका संक्षिप्त वर्णन करता हूँ. इसकी शोभा ही अपरिमेय है.
Submitted by ranjanaoli on Wed, 2011-09-21 17:44
तमे वाणी विचारी न चाल्या रे वैस्नवो, तमे वाणी विचारी नव चाल्या ।
अक्षर एकनो अर्थ न लाध्यो, मद मस्त थईने हाल्या ।।१
हे वैष्णवजन ! तुम वल्लभाचार्यजीकी वाणी-श्रीमद्बागवतकी सुबोधिनी टीकाके गूढ. रहस्योंको समझकर उन पर आचरण नहीं करते. उनके शब्दोंके एक भी अक्षरका अर्थ तुम नहीं समझ पाए, इसलिए झूठी मायामें मस्त होकर चल रहे हो.
सतवाणी वैस्नवने समझावुं, जेसूं मूल डाल प्रकासी।
श्री मुख आचारज जे ओचरया, तेणे जाए भरमणा नासी ।।२
Submitted by ranjanaoli on Tue, 2011-09-20 15:48
रे मन सृष्टि सकल सुपनकी, तूं करे तामें पुकार।
असत सतको ना मिले, तूं छोड आप विकार।।३
हे मन ! संसारकी सम्पूर्ण रचना स्वप्नवत् है, इसमें तू क्यों व्यर्थ पुकार रहा है. (मिथ्या संसारके लोग अखण्ड-सत्य वस्तुको समझ नहीं सकेंगे क्योंकि) असत्य कभी भी सत्यको प्राप्त नहीं कर सकता. इसलिए तू अपने ही विकारोंको त्याग दे.
O mind, do not lose yourself in the world. The people follow wierd rituals and they have very less understanding. They are running after the pleasures that can never be quenched. One cannot be satisfied with the reflection of the happiness. This whole creation is of dream and everything over here is false. The false can never attain the truth so do not go behind this false world but try to free yourself from vikar(false perception, sense pleasure, attachment, anger, greed etc).
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