हद पार बेहद है, बेहद पार अक्षर,
अक्षर पार अक्षरातीत, जागिये इन घर ॥
Beyond this perishable, timed and limited world exists indestructible, eternal and infinite, abode of Akshar Brahma. Beyond Akshar is Aksharatit, Wake up souls in this home.
swarth khudgarji selfish
------------------------------
swa = nij self arth= mean What is relevant to the self
khud = nij self garj need
selfish = doing something to please one's self
jab khud se Khuda, swa se Swami (master of the self), or Know thyself sabse bada gyaan hai?
yeh teeno mein main Self hai tab yeh teeno ko gaali ki tarah kyon prayog kiya gaya hai?
तबक चौदे ख्वाब के, याको पेडै नींद निदान।
नींद के पार जो खसम, सो ए क्यों करे पेहेचान।।३
यह चौदह लोकों वाला ब्रह्माण्ड स्वप्नका है. इसका मूल निश्चय ही नींद है. परब्रह्म परमात्मा इस नींदसे परे हैं, फिर ये स्वप्नके जीव उन्हें कैसे पहचान पाएँगे ?
prakaran 1 kalash
Fourteen domains (lok) all of dream the origin of it is amnesia, forgetfulness, slumber (lacking the consciousness of the self). The Master of the soul is definitely beyond this sleep but how can anyone know Him.
सब जातें नाम जुदे धरे, और सबका खावंद एक।
सबको बंदगी याही की, पीछे लडे बिन पाए विवेक।।२२
सभी जातिके लोग एक ही परमात्माको भिन्न-भिन्न नामोंसे पुकारते हैं परन्तु परमात्मा (स्वामी) तो सबका एक ही है. वस्तुतः पूजा भी सभीको इन्हींकी करनी है परन्तु विवेकके अभावसे सभी परस्पर कलह करते हैं.
Different sects(race, caste,region) name Him by different name, but there is only one Master of all. All are worshiping only Him but they are fighting because they have no intelligence to understand.
प्रकरण २ khulasa
एको देवः सर्वभूतेषु गूढः सर्वव्यापी सर्वभूतान्तरात्मा।
कर्माध्यक्षः सर्वभूताधिवासः साक्षी चेता केवलो निर्गुणश्च ॥११॥
એક પરમ તે દેવ સર્વની હૃદયગુફામાં વાસ કરે,
સઘળે વ્યાપક, સૌ પ્રાણીના અંતર્યામીરૂપ રહે;
કર્મતણાં ફલ તે જ દે, બધા જીવોનો તે આશ્રય છે,
સૌનો સાક્ષી, ચેતન, કેવલ, શુદ્ધ અને ગુણથી પર છે. ॥૧૧॥
नाम मेरा सुनते, और सुनत अपना वतन।
सुनते मिलावा रूहों का, याद आवे असल तन।।४९
इन ब्रह्मात्माओंको मेरा नाम अथवा अपना घर परमधाम तथा वहाँ पर आत्माओंके मिलनकी बात सुनते ही अपने मूल स्वरूप (पर आत्मा) का स्मरण हो आएगा.
The celestial souls when they hear my name, their original abode and the union of souls in Paramdham they will remember their original real self.
प्रकरण १३ shri khilavat granth
निन्दा स्तुति छोडके कहे यथार्थ बात ।
पक्षापक्ष गिने नहीं सो जानो तुम साथ ॥
श्री नवरंग स्वामी सुन्दरसागर में आज्ञा करते हैं कि निंदा और स्तुति दोनोंको छोडकर निष्पक्ष बातको ग्रहण करे, उसे सुन्दरसाथ जानो ।
Shri Navrang Swami in Sundarsagar says one who rejects both criticism and eulogy and always says what is truth and reality, on whom one can count on impartiality know such one as Sundarsath.
सुनो साथजी सिरदारो, ए कीजो वचन विचार। देखो बाहेर माहें अंतर, लीजो सार को सार जो सार ।।१
हे शिरोमणि सुन्दरसाथजी ! सुनो तथा इन वचनों पर विचार करो. इन वचनोंको बाहरसे श्रवण कर अन्दरसे मनन भी करो एवं इनके सारके भी सारतत्त्वको अन्तर आत्मामें धारण करो.
Listen O Sundarsath and leaders pay attention to these words! See outer mind, inner mind and mind of the soul and take the essence of essence.
सुंदरबाई कहे धाम से, मैं साथ बुलावन आई। धाम से ल्याई तारतम, करी ब्रह्मांड में रोसनाई।।२
हरि दर्जी का मर्म न पाया , जिन योह चोला अजब बनाया
पानी की सुई पवन का धागा , नौ दस मास सिवते लागा
पांच तत् की गुदरी बनाई , चंद सूरज दो थिगरी लगाई
कोटि जतन कर मुकुट बनाया , बिच बिच हिरा लाल लगाया
आपे सिवे आप बनावे , प्रान पुरुष कुं ले पहरावे
कहे कबीर सोई जन मेरा , नीर खीर का करे निवेरा
ऐसा समे जान आए बुधजी, कर कोट सूर समसेर ।
सुनते सोर सबद बाननका, होए गए सब जेर।।१
ऐसा समय जानकर बुद्धजी प्रकट हो गए हैं. उनके हाथमें करोड.ों सूर्योंके समान तेजस्वी (अखण्ड ज्ञाानकी) तलवार है. उनके मुखसे निःसृत शब्द वाणोंकी ध्वनीसे भयभीत होकर सभी अत्यचारी पराजित हो गए हैं.
The time of the intelligence has arrive,whose hand carries the sword of light of innumerable (zillions) of sun. The commotion of his words have scared off the mighty bullies and defeated them. काटे विकार सब असुरों के, उडायो हिरदे को अंधेर ।
धाम श्याम श्यामाजी संग प्यारी, ब्रह्मानन्द लीला निज न्यारी ॥१
सात घात जमुना जल राजे, झिलत जुगल किशोर विराजे ॥२
सघन कुन्ज मध्य चातक बोले, क्रीडत लाल लाडिली डोले ॥३
ताल पाल मध्य मोहोल सुहाये, खेलन प्यारो प्यारी आये ॥ ४
नित्य विहार स्वरूप पर, भई श्री महामति कुरवान निरखि छवि ॥५
धामधनी श्री कृष्ण हमारे, परम निधान परम रूप प्यारे ॥१
महाराजा मंगल रूप राजे, श्याम श्यामाजी दोउ अनूप बिराजे ॥ २
पूरण अक्षर पदसे न्यारे , सोई जियावर धनीजी हमारे ॥३
प्रगटे पिया निज अद्भुत सोई , उपमा पार पावे नहीं कोई ॥४
परमानन्द जोड़ी सुखकारी , अंगना पिया पर वारी वारी ॥ ५
kaliyug is over!
सास्त्रें आवरदा कही कलिजुग की, चार लाख बतीस हजार ।
काटे दिन पापें लिख्या मांहें सास्त्रों, सो पाइए अर्थ अंदर के विचार ।।१
शास्त्रोंमें कलियुगकी आयु चार लाख बत्तीस हजार वर्ष मानी गई है. यह भी बताया है कि आयुकी मर्यादा पाप बढ.नेके कारण घट जाएगी. अन्तर्दृष्टिसे विचार करने पर उसका रहस्य समझमें आ जाएगा.
सोले सै लगे रे साका सालिबाहनका, संवत सत्रह सै पैंतीस ।
बैठा ने साका विजिया अभिनन्दका, यों कहे सास्त्र और जोतीस ।।१८