Submitted by ranjanaoli on Wed, 2014-03-05 18:02
मनमानी करते तलाशते आज़ादी और ख़ुशी,
मिलता दुःख दर्द, जंजीरें और रस्सी ,
अरमानों की लम्बी कतार होती,
मन की मुराद कभी पूरी नहीं होती ,
मेहनत में कोई कसर नहीं छोड़ी,
पर ख़ास आता जेब में एक दो कौड़ी,
चाहती हर समस्या आसानी से हो हल,
पर भी हाथ लगती कठिनाई और दलदल,
आम मांगने पर मिलता बबूल,
हर दुआ न होती कबूल,
स्ट्रेस ने अंगीकार किया,
उच्च रक्तचाप ने दबोच लिया,
जीवन हरियाली सुख गयी,
बुद्धि की गति रुक गयी ,
मैं ने मुझ को दिया बहुत टेंशन,
तब याद आयी तेरी और तुझ पर हुआ अटेंशन,
Submitted by ranjanaoli on Fri, 2014-02-07 18:23
सुन्दरसाथजी आप सबके चरण कमल में प्रेम प्रणाम।
वाणी का कथन सर्वोपरि है यह वाणी सत्य है तब इसको माने नहीं तो मन मानी करें आप का जीवन आपका विश्वास।
Submitted by ranjanaoli on Thu, 2014-02-06 17:37
यह सृस्टि के सभी लोक (१४ लोक ) उनके स्वामी आदि नारायण की उत्पत्ति से आगे सात सुन्य निराकार निरंजन सारे क्षर ब्रह्माण्ड यानि हद भूमि जिनका कालांतर में क्षय होता हैं उसके पार बेहद (सत स्वरुप अक्षर ब्रह्म के अंतःकरण) यह अक्षय हैं और इनके पार के चेतन चित्त अनुपम स्वरुप हैं यह पूर्ण ब्रह्म हैं, वे सभी चेतना के श्रोत हैं और घट घट में विराजे हैं यह प्रेम रूप हैं इसीलिए ह्रदय में प्रेम उत्पन्न होने से प्राप्त होते हैं और आनंद स्वरुप श्यामा और अंगना सभी इनके साथ ही होते हैं और जब ऐसा होता है तब अपना ह्रदय ही परम धाम हो जाता है। देखिये यह अंतर की बात है बाह्य दृष्टि से यह समझ नहीं आयेगा।
Submitted by ranjanaoli on Wed, 2014-02-05 15:02
जागनी ब्रह्माण्ड में श्यामा वर श्याम सुन्दर जो परमधाम के धनि हैं प्रगट हुए उन्होंने अपना निज का नाम श्री कृष्ण और वह पूर्ण ब्रह्म हैं कहा और अक्षरातीत परमधाम अनादि है कहा और ब्रह्म सृष्टि और ब्रह्म वतन प्रगट किया जाहेर किया। और ब्रज रास में श्री कृष्ण की जो लीला हुई वह अक्षरातीत पूर्ण ब्रह्म श्री कृष्ण ने अपने ही ब्रह्म आत्माओं के संग खेला है यह भी जाहेर किया वह लीला अक्षर ने देखा और उनकी अक्षरातीत श्री कृष्ण पूर्ण ब्रह्म परमात्मा की लीला देखने की मनोरथ पूर्ण हुयी।
Submitted by ranjanaoli on Wed, 2014-02-05 14:35
महामति कहे हो मेहराज कहे हो इंद्रावती कहे हो या कहे प्राणनाथ एक ही अक्षरातीत परमधाम के धनि श्री कृष्ण श्याम को ही जाहेर कर रहें है।धाम धनि श्यामा के वर श्याम परम सत्य हैं उन्होंने स्वयं का नाम श्री कृष्णजी और परमधाम अनादि अक्षरातीत जो निराकार के पार अक्षर उनके भी पार है खुद प्रगट होकर जाहेर किया।
Submitted by ranjanaoli on Thu, 2013-08-08 18:49
When we follow Radha means we walk in the path where we become like her and unite with Shri Krishna or find Shri krishna in the heart of the soul. The prem the love is Radha's path. When we follow Mohamad means we walk in path where we become like him and meet Allah or make the heart the abode of Allah. Ishk the love is the path of Mohamad.
When we follow Jesus means we walk in the path where we become like him and unite with Father, the Lord and find the kingdom of heaven within. Love is the path of Jesus.
Submitted by ranjanaoli on Thu, 2013-07-25 16:44
Lets not just do analysis and appreciate it as nice poem!
Lets pledge today that we will live by its words.
Love to all.
तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा
تو ہندو بنےگا نہ مسلمان بنےگا
... ... You’ll become neither Hindu nor Muslim
इंसान की औलाद है इंसान बनेगा
انسان کی اولاد ہے انسان بنےگا
You are the child of a human; you’ll become a human
(as opposed to being labeled as Hindu or Muslim)
अच्छा है अभी तक तेरा कुछ नाम नहीं है
اچھا ہے ابھی تک تیرا کچھ نام نہیں ہے
Good that ’til now you have no name
Submitted by ranjanaoli on Fri, 2013-07-19 17:31
श्री कृष्ण के क्षर, अक्षर और अक्षरातीत स्वरुप
श्री कृष्ण अक्षरातीत परमधाम में आनंद स्वरुप श्यामा और १२,००० ब्रह्मात्माओं के साथ प्रेम लीला करतें हैं। श्री कृष्ण परब्रह्म हैं और श्यामा और सखियाँ और पचीस पक्ष परमधाम और सत स्वरुप अक्षर भगवान सभी इन्ही के अंश हैं। ब्रह्मधाम की यह लीला को स्वलीला द्वैत कहते हैं। सभी एक ब्रह्म के अंश हैं और ब्रह्म सिर्फ एक ही है सिर्फ लीला में भिन्न दिखाई देते हैं।
Submitted by ranjanaoli on Sun, 2013-04-21 20:18
The movie begins with cops calling 'jaagate raho' keep awake, where as they themselves are sleeping and calling for the sake of calling. A stranger from native place comes to this place at night. He is thirsty and is looking for water. A rich but totally drunk appears singing the song, that life is just a dream and in this what is truth or what is false, does it matter? We follow what our heart's desire, later in leisure, we may reflect whether it is wrong or right. When one drop of drink fell on the lips like of rock, its heart started to beat and said the life is nothing but dream.
Submitted by ranjanaoli on Wed, 2013-01-23 19:03
Mahamati means higher intelligence and Prannath means the Master of the living consciousness.
Mahamati is union of all (Indrawati and Shyam, Nij budhi of Indrawati with Noor budhi of Akshar, Shyama's soul aatma (which was present in Sundarbai and Rashul both in different times), and Dhamdhani's josh (Gibrail)). The awakened and enlightened intelligence of the jeev the conscious living being animating the physical body called Meheraj Thakkar became the instrument to deliver the message.
Submitted by ranjanaoli on Mon, 2012-11-19 19:47
कठिन निपट विकट घाटी प्रेमकी,
त्रबंक बंकों सूरों किनों न अगमाए।
धार तरवार पर सचर सिनगार कर,
सामी अंग सांगा रोम रोम भराए।।२
प्रेमका मार्ग निश्चय ही बड.ा विकट तथा कठिन है. इस मार्गमें कर्म, उपासना और ज्ञाानके तीन मोड. हैं. इस लिए बडे.-बडे. ...शूरवीरों (तपस्वी, ज्ञाानी) द्वारा भी इस मार्ग पर चला नहीं जाता. तलवारकी धारके समान तीक्ष्ण इस मार्ग पर शील, सन्तोष, धैर्य, क्षमा, दयारूपी शृङ्गार (कवच) धारण कर प्रवेश करो. सामनेसे शरीरके रोम रोमको बींधने वाले (निन्दा, उपालम्भके वचनरूपी) तीक्ष्ण नोंकवाले भाले भी चुभते हैं.
Submitted by ranjanaoli on Tue, 2012-10-09 17:45
अखंड आराम सबमें, चल विचल इत नाहिं।
सब सुख हैं अरस में, रहें याद हक के माहिं ।।१7 प्रकरण २७ परिक्रमा
यहाँ पर सर्वत्र अखण्ड आनन्द है. यहाँ लेश मात्र भी अस्थिरता नहीं है. इस दिव्य भूमिमें सब प्रकारके सुख विद्यमान है. यहाँकी सभी वस्तुएँ श्रीराजजीका स्मरण करतीं हैं.
Submitted by ranjanaoli on Fri, 2012-09-28 17:15
India's first President Dr. Rajendra Prasad's expression on
Dutiful Brave Chhatrasaal
During unveiling Maharaja Chhatrasaal's statue at Panna on January 28 1951
To establish the reminiscence of maker of India's proud history in the form of statue today's function is organized.
Submitted by ranjanaoli on Fri, 2012-09-07 19:06
निज बुध भेली नूर में, आग्या मिने अंकूर।
दया सागर जोस का, किन रहे न पकरयो पूर।।१
तारतमका प्रकाश और अक्षरब्रह्मकी मूलबुद्धि एकाकार होकर श्री धनीजीकी आज्ञाासे इन्द्रावतीके हृदयमें अङ्कुरित हुई. अक्षरातीत ब्रह्मके आवेशके साथ अवतीर्ण दयाके सागरका प्रवाह किसीसे भी पकड.ा नहीं जा सकता.
Submitted by ranjanaoli on Wed, 2012-09-05 18:46
I have a choice whether to serve Him or not.
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