Submitted by ranjanaoli on Tue, 2012-01-17 17:31
दुख रे प्यारो मेरे प्रानको।
सो मैं छोडयो क्योंकर जाए, जो मैं लियो है बुलाए ।। १ ।। टेक ।।
संसारके दुःख मुझे प्राणप्रिय लगते हैं, उन्हें मैं कैसे छोड. सकता हूँ ? उन दुःखोंको तो मैंने ही बुलाया है.
The sorrow is dear to my life. I invite the sorrow in my life, how can I ever let it go!
नींद निगोडी ना उडी, जो गई जीवको खाए।
रात दिन अगनी जले, तब जाए नींद उडाए।।९
यह दुष्ट (निगोडी) नींद टलती नहीं है. यह तो जीव (पूरे जीवन) को ही निगल गई है (पूरा जीवन इसी नींदमें व्यर्थ व्यतीत हो रहा है). जब रात-दिन विरहकी अग्नि जलेगी, तभी यह नींद उड. जाएगी.
This unconsciousness does not perish but eats up the whole life.
When one suffers day and night then this unconsciousness is lifted.
Submitted by ranjanaoli on Mon, 2012-01-09 18:51
Indravati unites with Aksharateet Shri Krishna Shyam and gets ready to awaken all other souls.
अवतार तले विस्नु के, विस्नु करे स्याम की सिफत।
इन विध लिख्या वेद में, सो आए स्याम बुधजी इत।।३६
शास्त्रोंमें सभी अवतार भगवान विष्णुके माने गए हैं किन्तु भगवान विष्णु भी श्रीकृष्णजीकी प्रशंसा करते हैं. वेदोंमें किए गए उल्लेखके अनुसार वे ही श्रीकृष्णजी बुद्धजीके रूपमें प्रकट हुए हैं.
Shri Krishna # Vishnu
It is the same Krishna(Shyam) came as nishkalank budhavatar!
लिखी अनेकों बुजरकियां, पैगंमरों के नाम।
ए मुकरर सब महंमदपें, सो महंमद कह्या जो स्याम।।३7
Submitted by ranjanaoli on Mon, 2011-12-26 01:01
नाम निज का श्री कृष्ण है यह तारतम देने आया हूँ , ओ मेरी श्यामा जगाने आया हूँ
अनादी अक्षरातीत निजधाम है यह जाहेर करने आया हूँ , ओ मेरी श्यामा जगाने आया हूँ
सत्चिदानन्द लक्षण वाले तेरा स्वामी, मै सत्य, चैतन्य और आनंद हूँ , ओ मेरी श्यामा जगाने आया हूँ
तू मेरी सुंदरी है, तेरी आत्मा जगाने आया हूँ , ओ मेरी श्यामा जगाने आया हूँ
तेरे लिए है सत सुख जो है सदा अविनाशी याद दिलाने आया हूँ, ओ मेरी श्यामा जगाने आया हूँ
यह संसार की नहीं तू मेरी अंगना नार यह समझाने आया हूँ , ओ मेरी श्यामा जगाने आया हूँ
Submitted by ranjanaoli on Mon, 2011-12-19 16:44
दिल मोमिन अरस तन बीच में, उन दिल बीच ए दिल।
केहेने को ए दिल है, है अरसै दिल असल।।१४
ब्रह्मात्माओंका हृदय उनके मूल तन पर आत्मामें है. उनके हृदयमें इस नश्वर शरीरका हृदय भी विद्यमान है. वस्तुतः कहने मात्रके लिए ही यह नश्वर शरीरका हृदय है. वास्तविक हृदय तो पर-आत्माके अन्दर ही विद्यमान है.
singaar prakaran 26
ख्वाब वजूद दिल मोमिन, हकें कह्या अरस सोए।
अरस तन मोमिन दिलसे, ए केहेने को हैं दोए।।२४
ब्रह्म आत्माओंके स्वप्नके शरीरके हृदयको श्रीराजजीने अपना परमधाम कहा है. वस्तुतः उनकी पर-आत्मा तथा इस स्वप्नके शरीरका हृदय कहने मात्रके लिए दो हैं, मूलतः एक ही हैं.
Submitted by ranjanaoli on Tue, 2011-12-13 20:25
चौदह लोक को तारने वाला धर्म श्री कृष्ण प्रणामी शुद्ध सनातन धर्म निजानंद संप्रदाय है। यह किसी धर्म का एक शाखा नहीं बल्कि सभी धर्म इसके शाखा हैं। सभी धर्म के ग्रंथो के रहष्य इस में जाहेर हुआ है।
Shri Krishna Pranami Sudh Sanatan Dharma Nijanand Sampraday is truly Universal Spiritual and all religions are its sects and not vice versa!
Pranam means total submission
Dharm means the rightful duty of the soul
Sanatan eternal
Shudh pure
Submitted by ranjanaoli on Sat, 2011-12-03 03:04
घुरसे गोरस हेत में, घर घर होत मंथन।
खेले सब में सांवरो, मिने बाहेर आंगन।।३२
आनन्द उल्लासके साथ प्रत्येक घरमें प्रेमपूर्वक दहीका मन्थन होता है. घरके अन्दर तथा घरके बाहर आँगनमें श्यामसुन्दर श्री कृष्ण, अपने प्रिय मित्र ग्वाल-बालोंके साथ खेला करते हैं.
Whole village is engaged blissfully in churning the curd and the lovely one plays in all, within and outside in the yard.
In Gokul village every house is busy blissfully churning the curd and in this Lord Shri Krishna plays in all, within and without!
Submitted by ranjanaoli on Fri, 2011-12-02 15:25
Submitted by ranjanaoli on Wed, 2011-11-23 16:34
श्री जी साहेब जी मेहरबान
गिरो बचाई साहेब ने, तले कोहतूर हूद तोफान ।
बेर दूजी किस्ती पर, चढाए उबारी सुभान।।१२
प्रकरण १ छोटा क़यामतनामा
इसी व्रज मण्डलमें इन्द्रकोपके समय श्रीकृष्णजीने ब्रह्मात्माओंको गोवर्धन पर्वतके नीचे सुरक्षित रखा था. इस प्रसङ्गको कुरानमें हूद तूफान कहा गया है. उस समय हूद पैगम्बरने अपने समुदायके लोगोंको कोहतूर पर्वतके नीचे सुरक्षित रखा था. दूसरी बार नूह तूफानके समय भी उन्होंने ही योगमायाकी नावमें चढ़ा कर उन्हें पार किया था.
छिपके साहेब कीजे याद, खासलखास नजीकी स्वाद ।
बडी द्वा माहें छिपके ल्याए, सब गिरोहसों करे छिपाए ।।१
प्रकरण १५ बड़ा क़यामतनामा
परमात्माकी उपासना गुप्त रूपसे करनी चाहिए. श्रेष्ठ आत्माएँ इस प्रकारकी उपासनासे उनकी निकटताका आनन्द प्राप्त करतीं हैं. सद्गुरु श्रीदेवचन्द्रजीने परब्रह्म परमात्मासे जो प्रार्थना की थी उसे उन्होंने ब्रह्मात्माओंके समुदायसे भी गुप्त रखा था.
One must pray to Lord secretly. The supreme souls pray in this manner and tastes the union with the Lord. The Master when prayed to Lord, he would even keep it secret from the other celestial souls.
बंदगी रूहानी और छिपी, जो कही साहेदी हजूर।
ए दोऊ बंदगी मारफत की, बीच तजल्ला नूर।।४२ श्री मारफत सागर
आत्मभावसे तथा गुप्तभावसे की जानेवाली उपासना परब्रह्म परमात्माके सान्निध्यकी कही जाती है. ये दोनों प्रकारकी उपासना आत्म-अनुभव अथवा परमधामकी पूर्ण पहचानकी है.
The souls that are from Paramdham they do not display their devotion and do it secretly and find themselves closer to the Lord.
Submitted by ranjanaoli on Thu, 2011-11-17 18:31
वरनन करते जिनको, धनी केहेते सोई धाम।
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सेवा सुरत संभारियो, करना एही काम।।३
सद्गुरु धनी श्री देवचन्द्रजी महाराज जिस मूलघरका वर्णन करते थे, वही अपना परमधाम है. इसलिए तुम धनीजीकी सेवा करते हुए अपनी सुरताको परमधामकी ओर केन्द्रित करो, क्योंकि हमें यही कार्य करना है.
स्याम स्यामाजी सुन्दर, देखो करके उलास।
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मनके मनोरथ पूरने, तुम रंग भर कीजो विलास।।५
अपने हृदयमें प्रेम और उल्लास भरकर अपने प्राणाधार श्याम-श्यामाजीके सुन्दर स्वरूपके दर्शन करो और अपने मनोरथोंको पूर्ण करनेके लिए उनके साथ आनन्द-विलास करो.
मंगल गाइए दुलहे के, आयो समे स्यामा वर स्याम।
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नैनों भर भर निरखिए, विलसिए रंग रस काम।।१०
इसलिए अब प्रियतम परमात्माके शुभगुणोंका गायन करो, क्योंकि सुन्दरवर श्याम-श्यामाको मिलनेका समय आ गया है. अब नयन भरकर युगल स्वरूपके दर्शन करो और प्रेमानन्द लेते हुए उनके साथ विलास करो.
धामके मोहोलों सामग्री, माहें सुखकारी कै विध।
अंदर आंखें खोलिए, आई है निज निध।।११
परमधामके महल और मन्दिर विभिन्न प्रकारकी आनन्ददायी सामग्रियोंसे परिपूर्ण हैं. इसलिए अन्तःदृष्टिको खोलकर देखो, वह अखण्ड निधि स्वरूप तारतम ज्ञाान यहाँ आ पहुँचा है.
Submitted by ranjanaoli on Thu, 2011-11-17 18:29
रोसनी पार के पार की, दई साहेब नाम धराए।
साहेब तेरी साहेबी भारी।
कौन उठावे तुझ बिन तेरी, सो दै मेरे सिर सारी।।१
हे (सद्गुरु) धनी ! आपकी महिमा अपरम्पार है. आपके बिना यह महान दायित्व कौन संभाल सकता है ? आपने तो यह महान् दायित्व मेरे सिर पर डाल दिया.
O Master, your commands are very difficult. Who can accomplish these herculean task without you and you have thrust it upon my shoulders(head)!
त्रिगुन तिथंकर अवतार, कै फिरस्ते पैगंमर।
तिन सबकी सोभा ले स्याम, आया महंमद पर।।२
Submitted by ranjanaoli on Thu, 2011-11-17 18:27
कृपानिध सुंदरवर स्याम, भले भले सुंदरवर स्याम।
उपज्यो सुख संसार में, आए धनी श्री धाम।।१
श्री श्यामाजीके वर श्याम-श्रीराजजी कृपाके सागर तथा अत्यन्त सुन्दर हैं. ऐसे धामके धनीके प्रकट होने पर संसारमें अखण्ड सुखका उदय हुआ.
प्रगटे पूरन ब्रह्म सकल में, ब्रह्म सृष्टि सिरदार।
ईस्वरी सृष्टि और जीव की, सब आए करो दीदार।।२
ब्रह्मसृष्टियोंकी शिरोमणि श्यामाजी पूर्णब्रह्मका आवेश लेकर इस संसारमें सद्गुरुके रूपमें पधारी हैं. ईश्वरीसृष्टि एवं जीवसृष्टि सभी आकर उनके दर्शन करें.
नित नए उछव आनंद में, होत किरंतन सार।
वैस्नव जो कोई षट दरसनी, आए इष्ट आचार।।३
Submitted by ranjanaoli on Thu, 2011-11-17 18:11
राग मारु
साथ जी सोभा देखिए, करें कुरबानी आतम।
वार डारों नख सिख लों, ऊपर धाम धनी खसम।।१
लिख्या है फुरमान में, करसी कुरबानी मोमिन।
अग्यारे सै साल का, सो आए पोहोंच्या दिन।।२
देख्या मैं विचार के, हम सिर किया फरज।
बडी बुजरकी मोमिनांे, देखें कौन क्यों देत करज।।३
करी कुरबानी तिन कारने, परख्या सबकी होए।
करे कुरबानी जुदे जुदे, सांच झूठ ए दोए।।४
कस न पाइए कसोटी बिना, रंग देखावे कसोटी।
कची पकी सब पाइए, मत छोटी या मोटी।।५
कसोटी कस देखावहीं, कसनी के बखत।
अबहीं प्रगट होएसी, जुदे झूठ से निकस के सत।।६
Submitted by ranjanaoli on Thu, 2011-11-17 17:58
धंन धंन सखी मेरे सोई रे दिन, जिन दिन पियाजीसों हुओ रे मिलन ।
धंन धंन सखी मेरे हुई पेहेचान, धंन धंन पीउ पर मैं भई कुरबान ।।१
हे ब्रह्मात्माओ ! जिस दिन सद्गुरु धनीके साथ मेरा मिलाप हुआ, वह दिन धन्य है. वह दिन भी धन्य है जिस दिन मैंने अपने धनीको पहचाना तथा उनपर स्वयंको सर्मिपत कर दिया.
O Souls, the day I united with my beloved is extremely blessed. The moment that I identified my beloved Lord is also very blessed and I am so grateful that I totally surrender myself to beloved Lord.
Submitted by ranjanaoli on Mon, 2011-10-17 13:48
मुखकमल मुकट छबि, मंगलाचरन
याद करो हक मोमिनों, खेल में अपना खसम।
हके कौल किया उतरते, अलस्तो बेरबकुंम।।१
तब रूहों बले कह्या, बीच हक खिलवत।
मजकूर किया हकें तुमसों, वह जिन भूलो न्यामत।।२
हुकमें ए कुंजी ल्याया इलम, हुकमें ले आया फुरमान।
दई बडाई रूहों हुकमें, हुकमें दई भिस्त जहान।।३
हुकमें हादी आइया, और हुकमें आए मोमन।
और फुरमान भेज्या इनपें, हकें कुंजी भेजी बैठ वतन।।४
और भी हुकमें ए किया, लिया रूह अल्ला का भेस।
पेहेचान दई सब अरसों की, माहें बैठे दे आवेस।।५
इलम दिया सब अरसों का, कहूं जरा न रही सक।
Submitted by ranjanaoli on Mon, 2011-10-17 13:33
प्रेम को अंग बरनन
प्रेम देखाऊं तुमको साथजी, जित अपना मूल वतन।
प्रेम धनी को अंग है, कहंू पाइए ना या बिन।।१
प्रेम नाम दुनियां मिने, ब्रह्म सृष्ट ल्याइंर् इत।
ए प्रेम इनों जाहेर किया, ना तो प्रेम दुनी में कित।।२
ए दुनियां पूजे त्रिगुन को, करके परमेस्वर।
सास्त्र अरथ ऐसा लेत हैं, कहे कोई नहीं इन ऊपर।। ३
सुक व्यास कहें भागवत में, प्रेम ना त्रिगुन पास।
प्रेम वसत ब्रह्म सृष्टि में, जो खेले सरूप व्रज रास।।४
तो नवधा से न्यारा कह्या, चौदे भवन में नाहिं।
सो प्रेम कहां से पाइए, जो रेहेत गोपिका माहिं।।५
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